मानसरोवर--मुंशी प्रेमचंद जी

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घरजमाई मुंशी प्रेम चंद 4 हरिधन भी पड़ा अन्दर-ही-अन्दर सुलग रहा था कि दोनों साले बाहर आये और बड़े साहब बोले- भैया, उठो, तीसरा पहर ढल गया, कब तक सोते रहोगे? ...

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